Reliance - Becoming an Oil Giant
रॉयटर्स रिपोर्ट के अनुसार रूस से आयात तेल की भारत में सबसे बड़ी खरीदार Reliance इंडस्ट्रीज है। पिछले साल रूसी तेल दिग्गज Rosneft ने रिलायंस को प्रतिदिन लगभग 5 लाख बैरल कच्चे तेल की आपूर्ति करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जो दोनों देशों के बीच अब तक का सबसे बड़ा ऊर्जा समझौता है।
रूस ने 2025 की पहली छमाही में भारत को लगभग 35 प्रतिशत तेल की आपूर्ति की, जो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से आयात होने वाले तेल से ज्यादा है। और रिलायंस ने इस वर्ष के पहले सात महीनों में यूरोप को प्रति माह औसतन 2.83 मिलियन बैरल डीजल और 1.5 मिलियन बैरल जेट ईंधन भेजा।
2021 में Reliance की जामनगर रिफाइनरी के कुल कच्चे तेल के आयात में रूसी कच्चे तेल का मात्र हिस्सा 3% था जो यूक्रेन में युद्ध के बाद से 2025 में औसतन 50% तक बढ़ गया है।
Reliance रसिया से कच्चा तेल खरीदकर भारत में सस्ती लेबर के कारण कम कीमत पर प्रोडक्ट तैयार कर विदेश में बेच रहा है और भारी मुनाफा कमा रहा है।
जामनगर रिफाइनरी ने फरवरी 2023 से अब तक दुनिया भर में 85.9 अरब डॉलर के रिफाइंड उत्पादों का निर्यात किया है और इस निर्यात का 42% (36 अरब डॉलर) रूस पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों को गया है।
रूस से तेल लेकर रिलायंस उन देशों को बेच रहा है जिनको रूस डायरेक्टली तेल नहीं बेच सकता। मतलब मुनाफा अम्बानी का और अमेरिका के टैरिफ का बोझ झेले पूरा भारत।
Reliance के कुल निर्यात का एक तिहाई हिस्सा, जिसका मूल्य 19.7 बिलियन डॉलर है, यूरोपीय संघ को तथा 6.3 बिलियन डॉलर के तेल उत्पाद अमेरिका को निर्यात किए गए हैं, जिनमें से अनुमानतः 2.3 बिलियन डॉलर का निर्यात रूसी कच्चे तेल से किया गया है।
भले ही रूस से सस्ते क्रूड ऑयल का अधिकांश लाभ रिलायंस को मिला हो फिर भी भारत सरकार ने अमेरिकी 50% टैरिफ झेलते हुए रूस के साथ व्यापार जारी रखा।
अब यूरोपीय संघ ने रूसी कच्चे तेल से संसाधित परिष्कृत पेट्रोलियम के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है जबकि अभी तक रिलाइंस के आधे से ज़्यादा जेट ईंधन निर्यात यूरोपीय संघ को हुए हैं और इस बाज़ार को खोने से रिलायंस की आय पर असर पड़ेगा इसलिए अब मोदी सरकार अपने पारंपरिक दुश्मन देश चीन से तमाम पाबन्दियों, बिगड़ते रिश्तों और कड़वाहट के बावजूद मुकेश अम्बानी की रिलायंस का भविष्य और मुनाफा सुधारने के लिए वापस वार्ता और दोस्ती का हाथ बढ़ाने जा रही है।
और जहां तक बात है कि अमेरिका ने भारत पर अधिक टैरिफ क्यों लगाया वो इसलिए क्योंकि रिलायंस रुस से कच्चा तेल लेकर तैयार पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स अमेरिका को ऊंचे दाम पर बेच रहा था।
मूल्य सीमा लागू होने के बाद से, अमेरिका रिलायंस रिफाइनरी से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स आयात करने लिहाज से चौथा सबसे बड़ा आयातक देश है, जिसने मूल्य सीमा लागू होने के बाद से जुलाई 2025 के अंत तक 84 लाख टन तेल उत्पादों का आयात किया है। उससे आगे केवल संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर ही हैं।
जामनगर से अमेरिकी आयात में मुख्य रूप से मिश्रण घटक (64 प्रतिशत), पेट्रोल (14 प्रतिशत) और ईंधन तेल (13 प्रतिशत) शामिल हैं।
रिलायंस के बाद, नायरा एनर्जी, जिसमें सरकारी तेल और गैस क्षेत्र की दिग्गज कंपनी रोसनेफ्ट सहित रूसी कंपनियों का बहुमत है, रूसी कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक रहा है। इसकी वाडिनार रिफाइनरी, जो जामनगर के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी निजी रिफाइनरी है, ने इस साल अपने कुल कच्चे तेल आयात का औसतन 66 प्रतिशत रूस से प्राप्त किया लेकिन नायरा का रूसी आयात रिलायंस द्वारा अपनी जामनगर रिफाइनरी के लिए रूस से किए जाने वाले आयात का सिर्फ एक तिहाई है।
आइये अब रिलायंस का पेट्रोलियम मार्केट में राजा बनने का खेल समझते हैं।
Rosneft, जिसने 2017 में 12.9 अरब डॉलर के सौदे में ESSAR ऑयल का अधिग्रहण किया था। बाद में एस्सार ऑयल का नाम बदलकर नायरा एनर्जी कर दिया गया। लेकिन नायरा एनर्जी पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण Rosneft नायरा एनर्जी से ट्राफिक नहीं कमा पा रहा है इसलिए रूसी Rosneft 2024 से नायरा एनर्जी से बाहर निकलने और अपनी 49.13% हिस्सेदारी बेचने के लिए खरीदारों की तलाश कर रहा है। Rosneft के साथ-साथ अन्य पार्टनर भी नायरा एनर्जी में अपनी हिस्सेदारी बेचने का सोच रहे है।
अब रिलायंस ने नायरा एनर्जी के अधिग्रहण के लिए बातचीत शुरू की है जिससे उसे सरकारी स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से आगे निकलने में मदद मिलेगी।
रिलायंस गुजरात के जामनगर में 68.2 मिलियन टन प्रति वर्ष की संयुक्त क्षमता वाली दो रिफाइनरियों का संचालन करती है। इसकी इकाइयाँ गुजरात के वाडिनार में नायरा की 20 मिलियन टन प्रति वर्ष क्षमता वाली इकाई के आसपास हैं।
नायरा की मदद से रिलायंस को IOC की 80.8 मिलियन टन प्रति वर्ष की क्षमता को पार करने और देश में नंबर एक रिफाइनर बनने में मदद मिलेगी।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि नायरा के 6,750 पेट्रोल पंप उसे ईंधन खुदरा कारोबार में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी हासिल करने में मदद करेंगे। देश में रिलायंस के 97,366 पेट्रोल पंपों में से केवल 1,972 ही उसके पेट्रोल पंप हैं।
तो अंत में पूरी कहानी का सार यह है कि अगर मोदी सरकार अमेरिका की हां में हां मिलाते हैं तो भारत की जनता के ऊपर से अतिरिक्त टैरिफ का बोझ तो कम हो जाएगा लेकिन रिलायंस की सस्ते रूसी कच्चे तेल तक पहुँच खत्म हो जाएगी जिससे उनका रिफाइनिंग मार्जिन कम हो सकता है और बिजनेस और राजनीति में सारा खेला मार्जिन का ही तो है।
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