अंधभक्त का इलाज

मैंने अंधभक्तों के इलाज के लिए एक छोटा सा अस्पताल खोला ही था कि एक अंधभक्त बड़ी आस के लिए मेरे पास आया और उसने अपने अंधभक्ति के पिटारे से बिना गाली गलौज या अपशब्दों का इस्तेमाल किये कुछ प्रश्न पूछे।

मुझे लगा मामला सीरियस नहीं है बस थोड़ा भटका हुआ है इसलिए इसको दिशा दिखाना चाहिए और मैंने इसी उम्मीद में इलाज के लिए उसे अपनी उंगली पकड़ा दी और कुछ दवाइयां दी।

लेकिन दवा खाकर थोड़ी ही देर में वो विचलित हो गया और जनरल वार्ड (पब्लिक पोस्ट) में इलाज कराने से मना करने लगने लगा वो बोला मेरी बीमारी सबके सामने मत बताओ और मुझसे प्राइवेट वार्ड (पर्सनल मैसेज) में भर्ती करने को बोलने लगा।

मुझे लगा अपनी बीमारी का इलाज जानकर थोड़ा घबरा सा गया है इसलिए मैंने उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिये कहा कि अगर आपका इलाज सबके सामने जनरल वार्ड में हुआ तो आपकी जैसी बीमारी वाले कई और लोगों को ये देखकर इलाज कराने की हिम्मत आएगी और आप उनके हीरो बन जाओगे।

लेकिन वो इलाज से बचने के लिए और प्राइवेट वार्ड में जाने के लिए मेरी तारीफ करने लगा तो मैंने बोला मैं चवन्नी नहीं जो अपनी बात से मुकर जाऊं और मेरे इलाज से मरीज के सही होने की गारंटी की भी गारंटी है।

पता नहीं क्यों लेकिन ये शब्द सुनते ही वो विचलित हो उठा जैसे उसको मिर्गी का दौरा पड़ गया हो और कुछ भी बड़बड़ाने लगा।

तभी अचानक मेरे इलाज से बचने के लिए उसके हाथ मेरी गर्दन तक पहुंच गए तो मुझे लगा की मैंने ऐसे गंभीर मरीज की बिमारी को ना समझकर गलती कर दी और मैंने उसे तुरंत ही उसे मोदीजी के बनाए हुए AIIMS के ICU वार्ड में रेफर कर दिया।

लेकिन अच्छा ये हुआ कि मेरे उस अनुभव से मुझे दोबारा ऐसा गंभीर केस ना लेने की सीख जरूर मिल गई क्योंकि अपने ही अस्पताल का नाम खराब होता है।

और मुझे ये कहानी लिखने की भी प्रेरणा मिली।😊

मतलब दाग (अंधभक्ति से) लगने से अगर कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे है।🙏

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

समाज के क्रान्ति कुमार 🙏

मील का पत्थर

नज़र का नजरिया