देश की रेल या पब्लिक का रेला

आज हमारे देश में ऐसा विकास हो रहा है जिसकी 85% लोगों को भी जरूरत नहीं है।

अब देश‌ के ट्रेन नेटवर्क और उसके संचालन को ही देख लीजिए।

हमारी जरूरत है कि ट्रेनों में आराम से रिजर्वेशन और सीट मिल जाए तथा ट्रेन समय से चले 

लेकिन मोदी जी ने ट्रेन संचालन को सुधारने की जगह फालतू का खर्चा बढ़ाकर देश को नई वंदेभारत ट्रेन दे दी और अब बुलेट ट्रेन की भी बात कर रहे हैं।

अरे कोई मोदीजी को बताए कि अमीरों के पास देश का 85% पैसा है तो इसका मतलब ये नहीं कि अमीरों की जरूरतों के हिसाब से ही सुविधाएं नहीं देनी हैं, 

भारत में 85% जनता गरीब और मध्यम वर्ग है तो उनके हिसाब से काम करिये ना क्योंकि उनका वोट ही जीत का अन्तर बनता है।

हमारा मौजूदा ट्रेन नेटवर्क पहले से ही काफी बड़ा है, केवल ट्रेन रूट को और मजबूत तथा ट्रेन शेड्यूल को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करने की जरूरत है।

हमारी मौजूदा ट्रेन अगर पूरी क्षमता से और समय पर चले तो वंदेभारत से भी कम समय में हम वो दूरी तय कर सकते हैं।

मेल 80-100 किमी/घंटा की गति से चल सकती है लेकिन 40-50 किमी/घंटा से ज्यादा तेज नहीं चलती।

शताब्दी और राजधानी जैसी सुपरफास्ट ट्रेनें भी 80-100 किमी/घंटा की अधिकतम गति से चलती हैं जबकि वो 150-160 किमी/घंटा तक आराम से चल सकती हैं।

वन्देभारत और बुलेट ट्रेन तो ले आओगे मोदीजी लेकिन उनके दौड़ने के लिये बेहतर पटरियां और इंफ्रास्ट्रक्चर भी तो चाहिए।

आप न्यूज देखिये, आये दिन कोई ना कोई वंदेभारत जानवरों से टकराती है और हर महीने 1-2 ट्रेन दुर्घटनाएं होती ही हैं। ऐसी घटनाओं का कारण खराब इंफ्रास्ट्रक्चर है, ट्रेन नहीं।

अब आप रेलवे स्टेशनों को ही देख लीजिए , सरकार इतना पैसा खर्च कर रही है स्टेशनों के मेंटिनेंस में जैसे रेलवे स्टेशन नहीं 5 स्टार होटल बना रहे हों।

अरे भाई अगर आप ट्रेन की लेट लतीफी खत्म कर दें तो यात्रियों को 10-15 घंटे स्टेशन पर इंतजार करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी,वो 10-15 मिनट पहले ही आयेंगे जैसे मैट्रो स्टेशन में होता है और वेटिंग रूम पर खर्च करना ही नहीं पड़ेगा।

लेकिन आजकल रेलवे के ज्यादातर काम सरकार ने कांट्रेक्ट पर दे रखे हैं और अगर सब कुछ व्यवस्थित हो गया तो उन ठेकेदारों की कमाई कैसे होगी और सरकार के मंत्रियों को चुनाव के लिये चंदा कैसे मिलेगा।

रेलवे को सही से चलाना सरकार की जिम्मेदारी है और अगर सरकार वो जिम्मेदारी नहीं निभाई पा रही और होने वाले नुकसान का डर दिखाकर उसको प्राइवेट कम्पनियों को दे रही है तो फिर सरकार की जरूरत ही क्या रह गयी?

अगर देश की सरकार जिसके पास देश का खजाना है वही रेलवे का सही प्रबंधन नहीं कर सकती तो कोई कम्पनी कैसे उस रेलवे को प्रॉफिट में चला रही है या चला सकती है?

इससे तो यही लगता है कि प्राइवेट कम्पनियों के पास सरकार से ज्यादा काबिल रिसोर्स हैं और अगर ऐसा है तो सरकार को उन रिसोर्स को शामिल करना चाहिए न कि कम्पनी को।

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