मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।।

 मजहब भले ही हों अलग पर मालिक एक है।

हिन्दू हो या मुस्लिम हम सब एक हैं ।।

तुम पढ़ते नमाज और हम करते भजन।

तुम लगाते टोपी और हम बांधते साफा।।

तरकीब भले हों अलग पर मन्नत एक है।

मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।।


हम करवाचौथ पर पूजते चाँद तुम भी पूजो ईद पर।

हम होली में गले मिलते तुम लगते गले बकरीद पर।।

तुम्हारे रमजान में राम हमारी दिवाली में अली।

फिर कैसे हुए अलग जब अली और राम एक हैं।।

है वही सच्चा धर्म जिसके इरादे नेक हैं।

मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।।

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