निस्वार्थ प्यार

 बेटा बाप को एक अनाथ आश्रम छोड़ने आया था। साथ में बाप के सारे कपड़े और कुछ जरूरी सामान का बैग भी लाया था। बेटे ने अनाथ आश्रम के मैनेजर से सारी जरूरी बातें कर ली और बाप को वहीं पर छोड़कर जाने लगा।

बेटा अभी अनाथ आश्रम के बाहर निकला ही था की उसका फोन बजा। फोन उसकी पत्नी का था जो दूसरी तरफ से पति को कह रही थी... वापस आने से पहले ससुर जी से कह देना की किसी छुट्टी या त्यौहार पर हमसे मिलने नहीं आएंगे तो भी चलेगा।

आप वही पर खुशी से रहिए और हमें भी यहां सुख से जीने दीजिए!

फोन रख कर बेटा वापस अनाथ आश्रम में जाता है। बेटे की नजर अपने बूढ़े पिता पर पड़ती है जो अनाथ आश्रम के मैनेजर से हंस हंस कर बातें कर रहे थे और काफी खुश भी लग रहे थे।

बेटा सोच में पड़ जाता है कि उसका पिता अनाथ आश्रम के मैनेजर को कैसे जानता है?

थोड़ी देर इंतजार करने के बाद जब उसका पिता मैनेजर से दूर जाता है तब बेटा मैनेजर के पास पहुंच जाता है और उससे पूछता है।

तब मैनेजर बेटे को बताता है मैं तुम्हारे पिता को कई सालों पहले तब से जानता हूं जब वह अनाथ आश्रम में एक अनाथ बच्चे को गोद लेने  आए थे!

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