मोदी सरकार के 10 साल और 2024 का चुनावी गणित
मेरे नजरिए से मोदी सरकार की 2014 और 2019 में जीत कोई चमत्कार नहीं थी। 2014 में जनता ने कांग्रेस की मौजूदा सरकार के विरोध में और 2019 में बीजेपी द्वारा गोदी मीडिया से सेट कराये गये नैरेटिव पर वोट किया।
2014 में कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की वजह से जनता ने दूसरा विकल्प बीजेपी चुना और सत्ता में आते ही मोदी ने धन, मीडिया और प्रशासन के दम पर विपक्ष को खत्म करने की पूरी कोशिश की।
2016 में मोदी सरकार द्वारा की गयी नोटबंदी का मकसद दरअसल पूंजीपतियों का काला धन खत्म करना नहीं बल्कि सिर्फ विपक्ष के बेनामी धन का सफाया करना था और बीजेपी अपनी इस रणनीति में सफल भी हुती।
नोटबंदी के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के पास चुनाव प्रचार के लिए पैसा ही नहीं बचा और बीजेपी ने नोटबंदी के पहले ही अपना सारा काला धन अलग-अलग राज्यों में पार्टी कार्यालय के नाम पर संपत्ति खरीदकर सफेद कर लिया। जिसकी वजह से बीजेपी ने चुनाव प्रचार करने, राहुल गांधी की इमेज खराब करने और कांग्रेस विरोधी नैरेटिव सेट करने में अथाह पैसा खर्च किया।
साथ ही साथ मोदी सरकार को पुलवामा के नाम पर भी देश की जनता ने भावुक होकर वोट दिया और मोदी फिर से 2019 में PM बन गए।
लेकिन 2024 बीजेपी के लिए बहुत सारी चुनौतियाँ लेकर आया है। बीजेपी के लाखों प्रयासों के बाद विपक्ष का एक साथ लामबंद होकर इण्डिया गठबंधन बनाना एक मास्टर स्ट्रोक रहा।
नोटबंदी में मोदी सरकार द्वारा काले धन के खात्मे के वादे के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा मोदी सरकार की चुनावी बांड योजना को रद्द करना और विपक्ष का बड़ी मजबूती से चुनावी बांड योजना को बीजेपी के काले धन से जोड़ना भाजपा के लिए हानिकारक साबित हुआ और सरकार की नकारात्मक छवि बनी।
हालांकि राममंदिर निर्माण से बीजेपी के कोर वोटर और रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों का मोदी के प्रति विश्वास बढ़ा है लेकिन विपक्ष के अपराधिक छवि वाले नेताओं को बीजेपी में शामिल कर मोदी ने अपनी लोकप्रियता को खुद नुकसान पहुंचाया है।
किसान आंदोलन को असंवेदनशील तरीके से हैंडल करना भी मोदी सरकार की एक बड़ी नाकामी रही। पहले चरण के आंदोलन में किसानों की मांगों का बीजेपी द्वारा सम्मान न करना और दूसरे आन्दोलन में केंद्र सरकार द्वारा पुलिस बल प्रयोग कर किसानों पर की गयी हिंसा भी मोदी सरकार के लिए ताबूत की कील साबित होगा वो भी खासकर हरियाणा और पंजाब में।
ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं का दुरुपयोग कर सिर्फ विरोधियों को निशाना बनाने का कदम मोदी सरकार पर ही बैक फायर कर गया।
विपक्ष शासित राज्यों में गवर्नर द्वारा मोदी सरकार ने जो तानाशाही की और राज्यों के विकास फंड को रोका उससे जनता में बीजेपी के खिलाफ गलत मैसेज गया।
खासकर केजरीवाल सरकार के मंत्रियों पर जिस तरह से दिल्ली पुलिस और सरकार संस्थाओं ने प्रोएक्टिव कार्यवाही की उससे केंद्र सरकार के प्रति जनता विश्वास कम हुआ और जनता में मोदी सरकार के तानाशाही रवैये वाली छवि बनी।
इस बार विपक्ष ने सोशल मीडिया पर जो मुहिम चलाई उसका फायदा भी विपक्ष को मिला है और इस बार विपक्ष के प्रयासों से लग रहा है कि जनता जागरूक हुई है और मोदी सरकार का पतन निश्चित है।
अगर सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करके मोदी सरकार को सीटें आ भी गईं तो एनडीए गठबंधन के साथियों को मैनेज करना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी बीजेपी के लिए।
कुल मिलकर ये कहा जा सकता है कि सरकार किसी की भी बने लेकिन इस बार विपक्ष पिछली बार के मुकाबले काफी मजबूत स्थिति में होगा जो अपने आप में लोकतंत्र की जीत होगी।
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