सियासती इश्क और वो नन्ही आँखे
आंसू जाया ना हो जाए ये सोंचकर रोती नहीं थी मैं,
लेकिन मणिपुर पर तेरी चुप्पी ने मेरे गाल गीले कर दिये।
दुख जिनपर बेशुमार गुजरे उन नन्हीं आंखों का कसूर क्या था,
वो बांट जोहते रहे तुम्हारी लेकिन तुम्हें मिलना भी मंजूर ना था।
उड़ने की चाहत लिये वो नन्हीं आंखें अब सपने देखना भूल गई,
कांपती है रूह अब दीया जलाने पर कि आग ना लग जाए कहीं।
सियासती इश्क भी अजीब है जो उनको बस एक वोट समझता है,
जब तक जिंदा थे कदर न की और अब मरने पर खैरियत पूछता है।
बस बहुत हुआ ये खेल तुम्हारा देखोगे अब कलम के गुस्से को,
अब ये देश करेगा इन्साफ तुम्हारा सुन इस मणिपुर के किस्से को।
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