कलम का कागज से पंगा
आज कलम का कागज से मैं पंगा करने वाली हूँ,
गोदी मीडिया की सच्चाई को मैं नंगा करने वाली हूँ।
जिसको इस देश के लोकतंत्र का चौथा खंभा होना था,
खबरों के गहरे समंदर में जिसको पावन गंगा होना था।
आज वही दिखता है हमको दलाली के किरदारों में,
चंद रूपयों को बिकने खड़ा है गली चौक चौबारों में।
अगर दाल में काला होता है तो तुम काली दाल दिखाते हो,
पत्रकारिता ताक पर रखके खबरों का स्तर क्यों गिराते हो।
किसानों की आवाज दबा तुम साहब का महिमा मंडन करते हो,
युवाओं के आंसू नहीं दिखते सत्ता के चरणों का चुम्बन करते हो।
हिन्दू कोई अत्याचार करें तो घर का मसला कहते हो,
वहीं मुसलमान करे तो उसको मानवता पे हमला कहते हो।
लोकतंत्र और देश की लाज पर तुमने कैसा मारा चाटा है,
सबसे ज्यादा तुम जैसों ने ही इस देश को धर्मों में बाँटा है।
सत्तर साल की आजादी को तुम देश पर लूट बताते हो,
गोडसे और सावरकर जैसों को भारत का गौरव बतलाते हो।
धरने पर बैठी बेटियां नहीं दिखती हैं लेकिन कंगना दिख जाती है,
मणिपुर की नग्नता न दिखती पर बुर्क में राजनीति दिख जाती है।
बस बहुत हुई न्यूज तुम्हारी समझ गये हम खेल तुम्हारा गंदा है,
तुम जैसे मीडिया और नही कुछ बस ब्लैकमेलिंग का धंधा है।
उम्मीद है कि जनता की आवाज बनो अंधे की लाठी हो जाओ,
हिम्मत करके सत्य निष्पक्ष लिखो ताकि फिर से जिंदा हो जाओ।
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