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मील का पत्थर

मील का पत्थर हूँ मार्गदर्शक नहीं जो तुमको राह दिखाउंगा| निर्जीव खड़ा धूल फांक रहा तेरे साथ नहीं चल पाऊंगा।। पथप्रहरी नहीं मंजिल भी नहीं मैं गंतव्य नहीं ले जाउंगा। मैं बस संकेतवाहक हूँ जो शब्दों में पथ बतलाऊंगा।। कल था जहां अब भी हूं वही बस दिन रात गुजरते देख रहा। बैठकर जीवनपथ के तट पर जीवनधारा प्रवाह को देख रहा।। दिन बदले, चेहरे बदले और चौक चौराहे भी बदल गये। बस ना बदली हाथों की रेखा सब सपने वादे बदल गये।। कई दीप बुझे आंसू छलके पर आशाओं का चक्र घूमता रहा। बस बेबस सूनी सी आंखों से मैं नियति का खेल देखता रहा।।

सत्ता का नशा

 एसी कमरों में बैठ कलम उठा हुकुम चलाना आसान है  चिलचिलाती धूप में वर्दी पहन दलाली खाना आसान है  चुनाव में हिंदू और मुसलमान का अंतर बताना आसान है  मीडिया का मुर्दे को जिंदा और जिंदा को मुर्दा बताना आसान है  नोट की ताकत से लोकतंत्र की नींव हिलाना आसान है  नेताजी का बातों में सबको उलझा बात बदलना आसान है  अगर ये सब आसान नहीं होता तो युवा बेरोजगार नहीं होता जवान सड़कों पर नहीं बार्डर पर होता और किसान दिल्ली बार्डर पर नहीं खेतों में होता