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मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।।

 मजहब भले ही हों अलग पर मालिक एक है। हिन्दू हो या मुस्लिम हम सब एक हैं ।। तुम पढ़ते नमाज और हम करते भजन। तुम लगाते टोपी और हम बांधते साफा।। तरकीब भले हों अलग पर मन्नत एक है। मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।। हम करवाचौथ पर पूजते चाँद तुम भी पूजो ईद पर। हम होली में गले मिलते तुम लगते गले बकरीद पर।। तुम्हारे रमजान में राम हमारी दिवाली में अली। फिर कैसे हुए अलग जब अली और राम एक हैं।। है वही सच्चा धर्म जिसके इरादे नेक हैं। मजहब भले ही हों अलग पर हम सब एक हैं।।

कितना हसीन हो वो दिन

कितना हसीन हो दिन और रंगीन शाम हो जाए  हर हिन्दू में खुदा हो और मुस्लिम में राम हो जाए नमाज में रामनाम गूंजे और भजन में अजान हो जाए रोज ईद की सुबह हो और दिवाली की शाम हो जाए  आंचल में मां के भेद ना हो ना लाज किसी की लुटने पाए हो हर हिन्दू में अगर खुदा और मुस्लिम में रामनाम हो जाए