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Showing posts from September, 2024

दवा परीक्षणों की अंधेरी दुनिया और भारतीय अस्पताल

बिना जानकारी और सहमति के भारत में गरीबों पर नई दवाओं के परीक्षण किए जाने का मामला नया नहीं है। आज के इस बढ़ते कॉम्पटीशन में दवा निर्माता कम्पनियों पर दबाव है कि वो जल्द से जल्द मार्केट में नयी दवा उतारकर अपने फील्ड में पायनियर हों और इस जुनून का शिकार बेचारे अनपढ़ गरीब बनते हैं।  इन लोगों को फ्री इलाज या कुछ पैसों का लालच देकर गुपचुप दवा परीक्षण किये जाते हैं और दवाओं के फेल्ड ट्रायल में लोगों को अपनी जान तक गवानी‌ पड़ती है।  बहुत सारे डाक्टर पैसे और शोहरत की लालच में दवा निर्माता कम्पनियों से जुड़कर अस्पतालों के साथ साथ NGO के माध्यम से फ्री हेल्थ कैम्प आर्गनाइज करते हैं और वहां गरीब मरीजों को मुफ्त दवा‌ देने के नाम पर ऐसे ड्रग्स ट्रायल करते हैं। आज मैं आपके साथ मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के महाराज यशवंत राव अस्पताल के ऐसे ही कुछ मामले शेयर कर रही हूं। इस अस्पताल में साल 2012 तक कुल 53 लोगों पर परीक्षण किए गये। ये सारे परीक्षण ब्रिटेन और जर्मनी की दवा कंपनियों की ओर से प्रायोजित थे और इनमें आठ लोगों की मौत हो गई। चंद्रकला को कुछ समय से सीने में दर्द की शिकायत थी जिसके चलते उनके ...

निस्वार्थ प्यार

 बेटा बाप को एक अनाथ आश्रम छोड़ने आया था। साथ में बाप के सारे कपड़े और कुछ जरूरी सामान का बैग भी लाया था। बेटे ने अनाथ आश्रम के मैनेजर से सारी जरूरी बातें कर ली और बाप को वहीं पर छोड़कर जाने लगा। बेटा अभी अनाथ आश्रम के बाहर निकला ही था की उसका फोन बजा। फोन उसकी पत्नी का था जो दूसरी तरफ से पति को कह रही थी... वापस आने से पहले ससुर जी से कह देना की किसी छुट्टी या त्यौहार पर हमसे मिलने नहीं आएंगे तो भी चलेगा। आप वही पर खुशी से रहिए और हमें भी यहां सुख से जीने दीजिए! फोन रख कर बेटा वापस अनाथ आश्रम में जाता है। बेटे की नजर अपने बूढ़े पिता पर पड़ती है जो अनाथ आश्रम के मैनेजर से हंस हंस कर बातें कर रहे थे और काफी खुश भी लग रहे थे। बेटा सोच में पड़ जाता है कि उसका पिता अनाथ आश्रम के मैनेजर को कैसे जानता है? थोड़ी देर इंतजार करने के बाद जब उसका पिता मैनेजर से दूर जाता है तब बेटा मैनेजर के पास पहुंच जाता है और उससे पूछता है। तब मैनेजर बेटे को बताता है मैं तुम्हारे पिता को कई सालों पहले तब से जानता हूं जब वह अनाथ आश्रम में एक अनाथ बच्चे को गोद लेने  आए थे!

अबोध प्यार के पंख

 एक दिन एक बुजुर्ग डाकिये ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा..."चिट्ठी ले लीजिये।" आवाज़ सुनते ही तुरंत अंदर से एक लड़की की आवाज गूंजी..." अभी आ रही हूँ...ठहरो।" लेकिन लगभग पांच मिनट तक जब कोई न आया तब डाकिये ने फिर कहा.."अरे भाई! कोई है क्या, अपनी चिट्ठी ले लो...मुझें औऱ बहुत जगह जाना है..मैं ज्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता....।" लड़की की फिर आवाज आई...," डाकिया चाचा , अगर आपको जल्दी है तो दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ कुछ देर औऱ लगेगा । " अब बूढ़े डाकिये ने झल्लाकर कहा,"नहीं,मैं खड़ा हूँ,रजिस्टर्ड चिट्ठी है,किसी का हस्ताक्षर भी चाहिये।" तकरीबन दस मिनट बाद दरवाजा खुला। डाकिया इस देरी के लिए ख़ूब झल्लाया हुआ तो था ही,अब उस लड़की पर चिल्लाने ही वाला था लेकिन, दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया औऱ उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।उसका सारा गुस्सा पल भर में फुर्र हो गया। उसके सामने एक नन्ही सी अपाहिज कन्या जिसके एक पैर नहीं थे, खड़ी थी। लडक़ी ने बेहद मासूमियत से डाकिये की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया औऱ कहा...दो मेरी चिट्ठी...।...

जज लोया की मौत नेचुरल या षणयंत्रकारी हत्या

मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत के जज बृजगोपाल हरकिशन लोया (48) के परिवार को 1 दिसंबर 2014 की सुबह सूचना दी गई कि नागपुर में उनकी मौत हो गई है, जहां वे एक सहयोगी की बेटी की शादी में हिस्‍सा लेने गए हुए थे। लोया इस देश के सबसे अहम मुकदमों में एक 2005 के सोहराबुद्दीन मुठभेड़ हत्‍याकांड की सुनवाई कर रहे थे. इस मामले में मुख्‍य आरोपी अमित शाह थे, जो सोहराबुद्दीन के मारे जाने के वक्‍त गुजरात के गृह राज्य मंत्री थे और लोया की मौत के वक्‍त भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष थे। मीडिया में खबर आई थी कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। उनकी मौत के बाद लोया के परिवार ने मीडिया से बात नहीं की थी, लेकिन नवंबर 2016 में लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी ने पत्रकार निरंजन टाकले से संपर्क किया जब वो पुणे गये थे। उन्हें अपने अंकल की मौत की परिस्थितियों को लेकर मन में संदेह था। इसके बाद नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच निरंजन की उनसे कई मुलाकातें हुईं। इस दौरान निरंजन ने उनकी मां अनुराधा बियाणी से बात की जो लोया की बहन हैं और सरकारी डॉक्‍टर हैं। इसके अलावा लोया की एक और बहन सरिता मांध...