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रिश्तों की अहमियत

 जैसे हमें किताब के कुछ पन्ने अच्छे नहीं लगे तो पूरी किताब को बेकार कहना सही नहीं है वैसे ही हम अक्सर रिश्तों को साथ बिताये कुछ आखिरी पलों के हिसाब से ही याद रखते हैं और अगर वो आखिरी कुछ यादें कड़वी हो तो तब तक की सारी ख़ूबसूरत यादें भूल जाते हैं लेकिन कुछ ख़राब यादों की वजह से पूरे रिश्ते को बेकार कहना सही नहीं है।

जमीर की ‌कीमत

जो कमाया वो ज्ञान बिक गया और लगाया ध्यान भी बिक गया। कलम की क्या ही बात करें जब नारी का भी सम्मान बिक गया। यहां तो छोटी सी कीमत पर बड़े-बडो़ं का ईमान बिक गया। अब सोच समझ कर बोलो क्योंकि दीवारों का भी कान बिक गया। कोई उनसे पूछे जिंदगी क्या है, जिनका सब अरमान बिक गया। नंगी रह गई जीवित लाशें और मुर्दों का परिधान बिक गया। चोरों को मत दोष दो क्योंकि घर का ही दरबान बिक गया। पशुओं की क्या बात करें जब कीमत लगी तो इंसान भी बिक गया।।