रिश्तों की अहमियत
जैसे हमें किताब के कुछ पन्ने अच्छे नहीं लगे तो पूरी किताब को बेकार कहना सही नहीं है वैसे ही हम अक्सर रिश्तों को साथ बिताये कुछ आखिरी पलों के हिसाब से ही याद रखते हैं और अगर वो आखिरी कुछ यादें कड़वी हो तो तब तक की सारी ख़ूबसूरत यादें भूल जाते हैं लेकिन कुछ ख़राब यादों की वजह से पूरे रिश्ते को बेकार कहना सही नहीं है।